Aditya Hridaya Stotra PDF Download Lyrics

Aditya Hridaya Stotra is a powerful hymn dedicated to Lord Surya, the Sun God. The stotra is believed to have been recited by Sage Agastya to Lord Rama just before the battle with Ravana in the Ramayana. This article will provide a complete guide to the Aditya Hridaya Stotra, including the lyrics, PDF download, and the benefits of reciting it.

Introduction

  • Briefly explain the significance of Aditya Hridaya Stotra
  • Mention the story of Sage Agastya reciting it to Lord Rama

The Meaning and Importance of Aditya Hridaya Stotra

  • Provide a line-by-line interpretation of the stotra
  • Explain the significance of each verse and how it can benefit the reciter
  • Describe the positive impact of reciting the stotra regularly

Aditya Hridaya Stotra Lyrics

  • Provide the complete lyrics of the stotra in Sanskrit
  • Use tables to show the Sanskrit verses and their corresponding translations in English
  • Explain any difficult or unfamiliar words in the stotra

How to Recite Aditya Hridaya Stotra

  • Provide a step-by-step guide to reciting the stotra
  • Explain the ideal time, place, and posture for reciting the stotra
  • Describe any specific rituals or offerings that can enhance the effectiveness of the stotra

Benefits of Reciting Aditya Hridaya Stotra

  • Explain the physical, mental, and spiritual benefits of reciting the stotra regularly
  • Mention any miraculous experiences reported by those who have recited the stotra
  • Provide scientific evidence or research supporting the positive effects of reciting hymns like Aditya Hridaya Stotra

Aditya Hridaya Stotra PDF Download

  • Provide a link or instructions for downloading the stotra in PDF format
  • Mention any other resources or websites related to the stotra that may be useful for readers

Aditya Hridaya Stotra PDF Lyrics

|| ॐ श्री गणेशाय नमः ||

|| विनियोग ||
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिर: अनुष्टुपछन्दः आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः |

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |

|| करन्यास ||
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः । ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् |
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् || 1
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् |
उपागम्याब्रवीद् रामगस्त्यो भगवान् भगवांस्तदा || 2
राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् |
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे || 3
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् |
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् || 4
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् |
चिन्ताशोकप्रशमनम् मायुर्वर्धनमुत्तमम् || 5
रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् |
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् || 6


अर्थात: 
युद्ध के पश्चात भगवान् श्रीराम चिंतित व् थकान की अवस्था में युद्धमैदान में खड़े थे| उसी समय युद्ध के लिए रणभूमि में रावण श्रीराम के समक्ष उपस्थित हो गया| 1
श्रीराम को चिंतित देखकर श्रीरामचंद्र व् दुष्ट रावण के बीच होने वाले युद्ध को देखने देवताओं संग आए हुए ऋषि अगस्त्य श्रीराम के पास आए और उनसे कहा| 2
हे दिव्य अस्त्रों से सुशोभित सबके ह्रदय के प्रिय राम, एक गुप्त सनातन स्तोत्र सुनो, हे वत्स, इस स्तोत्र के जप से आप युद्ध में शत्रु पर निसंदेह विजय प्राप्त करोगे| 3

यह स्तोत्र है “आदित्यहृदयं” यह पुण्य स्तोत्र सभी शत्रुओं का विनाश कर देता है| इस अनन्त व् परम शुभ स्तोत्र के नित्य जप से सदैव विजय व् शुभ भाग्य की प्राप्ति होती है| 4
यह स्तोत्र सभी पापो का नाश करने वाला व् सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल करने वाला है| और सभी चिंताओं व् शोक का भी नाश कर आयु को बढ़ाने वाला उत्तम स्तोत्र है| 5
नित्य उदय होने वाले भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं| भगवान् सूर्य देवताओ व् असुरों में भी पूजनीय है| यह विवस्वान नाम से प्रसिद्ध, किरण का विस्तार करने वाले भास्कर और समस्त संसार के स्वामी भुवनेश्वर हैं| आप इनका “रश्मिमंते, समुद्यन्ते, देवासुरनमस्कृताये, विवस्वते, भास्कराय, भुवनेश्वराय” मन्त्रों के द्वारा पूजन करो| 6

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः |
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः || 7
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः |
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः || 8
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः |
वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ||9
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् |
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः || 10
हरिदश्वः सहस्रार्चि: सप्तसप्तिमरीचिमान |
तिमिरोन्मन्थन: शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्डकोअंशुमान || 11
हिरण्यगर्भः शिशिरः स्तपनो भास्करो रविः |
अग्निगर्भोsदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशान: || 12

अर्थात:
सभी देवता इन्ही के स्वरुप हैं| सूर्य अपने तेज़ और किरणों से इस सम्पूर्ण जगत को अस्त्तित्व व् स्फूर्ति का उदय करने वाले हैं| इनकी रश्मियों (सूर्य किरण) के प्रसार से ही देवताओ, असुरों व् धरती लोक अर्थात तीनो लोकों का पालन होता हैं|7
भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति,  महेन्द्र, धनद, काल, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी प्रचलित हैं|8
ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं के कारक और प्रभाकर अर्थात प्रकाश के पुंज हैं |9

इन्ही के नाम हैं “आदित्य (माता अदिति के पुत्र), सविता (जगत की उत्तपत्ती करने वाले), सूर्य “सर्वव्यापत”, खग “आकाश में विचरण करने वाले”, पूषा “पोषण करने वाले”, गभस्तिमान “प्रकाशमान”, सुवर्णसदृश्य “स्वर्ण से दिखने वाले”, भानु “गुणी व् सुन्दर”, हिरण्यरेता “ब्रह्मांड के जन्म का मूल”, दिवाकर “रात का अँधेरा हटाकर दिन का प्रकाश फैलाने वाले” | 10
हरिदश्व, सहस्रार्चि “सैकड़ों किरणों से शोभायमान”, सप्तसप्ति “सात घोड़ों पर सवारी करने वाले”, मरीचिमान “किरणों से शोभायमान”, तिमिरोमंथन “अँधेरे का अंत करने वाले”, शम्भू, त्वष्टा “विश्वकर्मा”, मार्तण्डक “विश्व को प्राण देने वाले”, अंशुमान “प्रतिभाशाली” | 11
हिरण्यगर्भ “वह ज्योतिर्मय अंड जिससे ब्रह्मा तथा समस्त सृष्टि की उत्पत्ति हुई है”, शिशिर “प्रकृति से ही सुख देने वाले”, तपन “तपिश देने वाले”, अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ “अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले”, अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन “शीतकाल को समाप्त करने वाले” |12
Aditya Hridaya Stotra PDF Lyrics with Meaning in Hindi

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुस्सामपारगः |
धनवृष्टिरपाम मित्रो विंध्यवीथीप्लवंगम: || 13
आतपी मंडली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः |
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भव: || 14
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः |
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्नमोस्तुते || 15
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः |
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः || 16
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाए नमो नमः |
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः || 17
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः |
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोस्तुते || 18

अर्थात:
व्योमनाथ “अनंत गगन के स्वामी”, तमभेदी “अंधकार को भेदने वाले, ऋग “राजा”, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि “धन की बारिश करने वाले”, अपाम मित्र “जल को उत्पन्न करने वाले”, विंध्यवीथिप्लवंगम “अनंत में तेज गति से विचरने वाले” |13
आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(पीले वर्ण वाले), सर्वतापन “सभी को ताप देने वाले”, कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव “सबके जन्म के कारण” |14
नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन “विश्व की सुरक्षा करने वाले”, तेजस्वियों में अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं| इन सभी नामो से प्रसिद्ध हे सूर्यदेव, आपको नमस्कार है| 15

पूर्वगिरी उदयांचल तथा पश्चिमगिरी अस्तांचल के रूप में आपको नमस्कार है | आप “ज्योतिर्गणों ” ग्रहों और सितारों के स्वामी है और आप ही दिन के अधिपति है, आपको नमन है| 16

 

आप जयस्वरूप और विजय व् मगलकारी हैं| आपका रथ में हरे रंग के घोड़ो से   सुसज्जित हैं| आपको बार बार नमस्कार है| सहस्रों किरणों से सुसज्जित सूर्यदेव, आपको बारम्बार नमस्कार है| हे आदित्य” माता अदिति के पुत्र ” आपको नमन है| 17
उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव, आपको नमस्कार है| कमल सामान खिले हुए अतुलनीय तेजधारी मार्तण्ड,  आपको नमस्कार है| 18

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायादित्यवर्चसे |
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः || 19
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने |
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषाम् पतये नमः || 20
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे |
नमस्तमोsभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे || 21
नाशयत्येष वै भूतम तमेष सृजति प्रभुः |
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः || 22
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः |
एष चैवाग्निहोत्रम च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम || 23
देवाशच क्रतवश्चैव क्रतुनाम फलमेव च |
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः || 24

अर्थात: 
आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है | सूर आपकी संज्ञा है, यह सम्पूर्ण  सौरमंडल आपका ही स्वरुप है, आप प्रकाश से भरे हुए हैं, सब कुछ स्वाहा करने में समर्थ अग्नि आपका ही  रूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है| 19
आप अंधकार रुपी अज्ञानता का नाश करने वाले है| जड़ता व् शीतलता के कारक है  और शत्रु का विनाश करने वाले हैं| आप कृतघ्नों का विनाश करने वाले, आप  देवस्वरूप व् संपूर्ण ज्योतिष के स्वामी “ग्रहो व् नक्षत्रो जिनके आधार पर भविष्य की गणना की जाती है” आपको नमस्कार है| 20
आपका सूर्यमंडल तपाये हुए सोने के समान है, आप हरी व् विश्वकर्मा हैं, अंधकार के नाश करने वाले, प्रकाशस्वरुप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है| 21

प्रभु सूर्यदेव ही भूतों का संहार, व् सृष्टि का सृजन और पालन करते हैं| इन्ही की  किरणों से गर्मी व् वर्षा होती हैं| 22
सूर्यदेव अन्तर्यामी रूप में सभी के सो जाने पर भी जागते रहते हैं| ये ही यज्ञ हवन की अग्नि में देने आहुति को ग्रहण करने वाले व् यज्ञ फल से मिलने वाले देवता हैं| 23
वेदों, यज्ञ और यज्ञों के फल को प्रदान करने वाले सूर्यदेव ही हैं| तीनों लोकों में सभी कर्मो का फल देने में ये पूर्णतया समर्थवान हैं| 24
Aditya Hridaya Stotra PDF Lyrics with Meaning in Hindi

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च |
कीर्तयन पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव || 25
पूज्यस्वैनमेकाग्रे देवदेवम जगत्पतिम |
एतत त्रिगुणितम् जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यति || 26
अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणम् तवं जहिष्यसि |
एवमुक्त्वा ततोsगस्त्यो जगामस यथागतम् || 27
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोs भवत तदा |
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान || 28
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् |
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान || 29
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थ समुपागमत |
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेsभवत् || 30
अथ रविरवदन्निरिक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाण: |
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति || 31


अर्थात: 
हे राघव, संकट में, पीड़ा में, कठिन रास्ते में व् किसी भय के सामने आने पर जो व्यक्ति  भगवान् सूर्यदेव का कीर्तन-भजन करते है, उन्हें वेदना नहीं भोगनी पड़ती है| 25
अतः आप स्थिरचित होकर इन देवाधिदेव जगत्पति की अराधना कीजिए| इस आदित्यहृदय स्तोत्र का तीन बार जप करने से आप इस रण में विजयी होंगे| 26
हे दिव्य अस्त्रो से सुशोभित राम, आप इसी पल रावण का वध करने में समर्थ होंगे| यह बताकर ऋषि अगस्त्य अपने गंतव्य को चले गए| 27
ऋषि अगस्त्य द्वारा दिए सलाह को सुनकर महातेजस्वी राघव का शोक नष्ट हो गया| और उन्होंने प्रसन्नमुद्रा से  शुद्ध मन से आदित्यहृदय स्तोत्र को धारण किया| 28

श्रीराम ने तीन बार आचमन कर शुद्ध होकर सूर्यदेव को देखते हुए आदित्यहृदय स्तोत्र का तीन बार जाप किया| ऐसा कर वह अत्यंत प्रसन्न हुए और    इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ | फिर परम शूरवीर श्रीराम अपना धनुष उठाया| 29

और अत्यंत उत्साह से भरकर युद्ध को समाप्त करने के लिए आगे बढे और दुष्टात्मा रावण को देखा | उन्होंने ठान लिया कि सभी यतन कर रावण का वध करना ही है| 30
भगवान् सूर्य जो उस समय देवताओं के मध्य उपस्थित थे, रावण के विनाश का समय निकट जान उन्होंने प्रसन्न मुद्रा में श्रीराम की ओर देखकर कहा – ‘हे श्रीराम, अब शीघ्र  कीजिए| इस भांति महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के युद्धकाण्ड में वर्णन किया हुआ श्री सूर्यदेव की महिमागान “आदित्यहृदय स्तोत्र मंत्र” संपन्न होता है| 31

|| इति श्री आदित्यहृदयं स्तोत्रम सम्पूर्णम ||

Aditya Hridaya Stotra Benefits – आदित्यहृदय स्तोत्र पाठ के लाभ

इस स्तोत्र से होने वाले अनगिनत लाभों का भी वर्णन इस पाठ में मिलता है जो इस प्रकार है|

– इस अनन्त व् परम शुभ स्तोत्र के नित्य जप शत्रुओं का विनाश कर सदैव विजय व् शुभ भाग्य का लाभ होता है|

– यह स्तोत्र सभी पापो का नाश करने वाला व् सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल करने वाला  और सभी चिंताओं व् शोक का नाश कर आयु को का उत्तम स्तोत्र है|

– जो भक्त इसका पाठ संकट, पीड़ा, कठिन परिस्थिति या किसी भय के समय भगवान् सूर्यदेव का कीर्तन-भजन करते है, उन्हें वेदना नहीं भोगनी पड़ती है|

– एकाग्रचित होकर देवाधिदेव सूर्यदेव की अराधना करने से और आदित्यहृदय स्तोत्र के नियमित जप करने से भक्त जीवन की हर कठिनाई पर विजयी होते है|

– तीनों लोकों में होने वाले सभी कर्मो का फल देने में सूर्यदेव पूर्णतया समर्थवान हैं| वेदों, यज्ञ और यज्ञों के फल को सूर्यदेव ही प्रदान करते हैं| (Aditya Hridaya Stotra Benefits)

आदित्यहृदय स्तोत्र पाठ के ज्योतिष लाभ

इस पाठ में बताया गया है की भगवान् सूर्य ज्योतिष अर्थात सभी ग्रहो व् नक्षत्रो के भी स्वामी है यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य अशुभ है और जीवन में बाधाओ ने घेर रखा है तो उन जातको को इसका नियमित रूप से पाठ करना चाहिए।

साथ ही ज्योतिष में माना जाता है कि जातक की कुंडली में किसी भी गृह की कमजोर होने पर भी सूर्य अराधना करने से जातक को सभी परेशानियों से राहत मिलती है क्योंकि सूर्य ही अन्य सभी ग्रहो के स्वामी है और सभी ग्रह उनसे प्रभावित होते है|